क्या यह है पृथ्वी जैसा दूसरा ग्रह ?

 क्या यह है पृथ्वी जैसा दूसरा ग्रह ?
 ब्रम्हांड 
मानव इतिहास की शुरुआत से ही, हम सभी आसमान की ओर देख कर हैरान होते आए है। आधुनिक विज्ञानं की मदद से हम जान पाए की, इस ब्रम्हांड में हमारी जगह कहा पर है। लेकिन, इस ब्रह्माण्ड के सैकड़ो राज़ अब भी दफ़न है। 

कल्पना कीजिये एक ऐसी दुनिया की जो घिरी हो बर्फ की चट्टानों से और यही हो एक रहस्यमय ब्लैक होल..  और मैग्नेटिक बबल्स का एक गोला.. दस करोड़ मील चौड़ा.. जहा खतराक रेडिएशन के बीच एक कॉस्मिक वॉल तबाही मचाती है। ये गैलेक्सी के दूर दराज़ हिस्से में है.. मगर हमारे काफ़ी नजदीक..

हमें लगता है के हमारा सौर्य मंडल ही हमारा घर है लेकिन हम इंसानो को ये भी नहीं पता की इसका दायरा ?कितना है।  हमे यह सिखाया जाता है की जहा हमारे ग्रह ख़तम होते है वही तक हमारा सूर्य मंडल सीमित है.. लेकिन सच तो यह है की हमारा नब्बे फीसदी सौर्य मंडल वही से शुरू होता है। 
आखिर हमारा सौर मंडल कहाँ समाप्त होता है?

जिस सौर मंडल को हम घर कहते हैं, उसमें हमारा सूर्य, आठ ग्रह, उनके सभी चंद्रमा, उल्कापिंड बेल्ट और बहुत सारे धूमकेतु हैं। नेपच्यून की कक्षा के बाहर कुपर बेल्ट है। सूर्य के चारों ओर लगभग खाली वलय है जिसमें बर्फीले पिंड हैं.. प्लूटो से लगभग सभी छोटे हैं, जो सूर्य के चारों ओर धीमी परिक्रमा करते हैं।

कुपर बेल्ट के किनारे से परे ऊर्ट क्लाउड है। ग्रहों की कक्षाओं और कुपर बेल्ट के विपरीत, जो एक डिस्क की तरह काफी सपाट हैं.. यह सूर्य, ग्रहों और कुपर बेल्ट ऑब्जेक्ट्स के चारों ओर एक विशाल गोलाकार खोल है। हमारे सौर मंडल के चारों ओर मोटी दीवारों के साथ एक बड़े बुलबुले की तरह। यह अंतरिक्ष मलबे के बर्फीले टुकड़ों से बना है जो पहाड़ों के आकार के और कभी-कभी बड़े होते हैं। यहीं से कुछ धूमकेतु आते हैं।
कुपर बेल्ट की खोज के बाद हमारे सौर्य मंडल का आकार काफी हद तक बढ़ गया, लेकिन इसी कारन कुछ ऐसा भी हुआ जिससे आज भी विवादो का माहौल बना रहता है। अब इस बेल्ट में प्लूटो से भी बड़े आकार की कुछ चीज़े पाई गयी.. इसीलिए प्लूटो को ड्वार्फ प्लेनेट का दर्जा दे दिया गया.

अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग दस प्रतिशत तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है।कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा में कम-से-कम पचास अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी दो हज़ार तेरह में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि सौ अरब, ग्रह हो सकते हैं।

दो हज़ार सौला मे एस्ट्रोनॉमर्स ने तब दुनिया को हैरान कर दिया जब उन्हें हमारे सबसे करीबी स्टार के चारो तरफ पृथ्वी जैसा ग्रह चक्कर काटता मिल गया.. हमारी आकाश गंगा में कई रेड ड्वार्फ पाए जाते है। इनमे बीस में से कम से कम  एक रेड ड्वार्फ ऐसा होता है जिसके इर्द गिर्द गृह चक्कर काटते रहते है, जो इतनी सही दूरी पर होते है की उनकी सतह पर लिक्विड पानी जमा हो जाता है। इससे ज़्यादा करीब आने पर ये पानी गर्मी के कारण भाप में बदल जाता है और अगर इससे ज़्यादा दूर हो जाए तो बर्फ में.

कुछ ग्रह जिनपर पानी पाया जा सकता है, ये दिखने में तो पृथ्वी जैसे ही लगते है.. लेकिन इसमें भी एक परेशानी है। ऐसे ग्रह अपने स्टार के इतने पास होते है, की ये खुद की ही एक्सिस पर घूम नहीं पाते। जिस कारण इनके एक तरफ के सतह पर हमेशा दिन होता है.. और दूसरी तरफ सिर्फ रात। स्टार के इतने करीब होने के कारन, स्टार का गुरुत्वाकर्षण उस गृह को घूमने नहीं देता। इस चीज़ को टाइडल लॉकिंग कहते है। 

टाइडल लॉकिंग की वजह से ऐसे ग्रहो पर एक तरफ झुलसा देने वाली गर्मी होती है तो दूसरी ओर जमा देने वाली सर्दी। सन दो हज़ार सौला में वैज्ञानिको को हमारे सौर मंडल के सबसे करीब स्टार proxima centauri के इर्द गिर्द चक्कर लगता एक ग्रह मिला। इसका नाम प्रोक्सिमा बी रखा गया।  ये अपने स्टार के इतने करीब है के यहाँ पृथ्वी की तरह समुद्र पाए जा सकते है।
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