Chittorgarh:-आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं यह क्या कर रहा हूं? लेकिन मैं जो कह रहा हूं मेरे निजी अनुभव से बहुत ही सत्य एवं सही है। यदि हम असीमित सफलता एवं जीत की ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहते हैं तो हमें जीतने के साथ साथ हार को सहर्ष स्वीकार करने की आदत डालनी चाहिए, हार से हताश होने की जगह प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर से एक नई शुरुआत करनी चाहिए।
जिस प्रकार से सोचो कि यदि कार में फॉरवर्ड गेयर के अलावा रिवर्स गियर ना होता तो क्या होता और गाड़ी में एक्सीलेटर के साथ क्लच और ब्रेक ना होते तो क्या होता? बस उसी प्रकार से जीवन में कभी कभी रुकना, पीछे कदम बढ़ाना और हार को स्वीकार करना भी बड़ी जीत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जिन लोगों को बचपन से सिर्फ जीतने की आदत हो जाती है वह घर और बाहर दोनों जगह अहम के साथ जीने लगता है और जाने अनजाने में वह अपनों परायों के साथ तानाशाही का व्यवहार करने लगते है और अकस्मात मिली हार को वह स्वीकार नहीं कर पाते, जब कभी ऐसे लोग हारते हैं तो वे किसी कांच की भांति टूट कर बिखर जाते हैं और फिर कभी फिर से जुड़ नहीं पाते इसलिए हमें हमारे जीवन में हार की आदत भी डालनी चाहिए निरंतर जीत सिर्फ हमारे अहंकार और गलतफहमियों को बढ़ावा देता है वही इसके विपरीत कभी-कभी हारना हमें अध्यात्मिक और अद्भुत शक्तियों की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है जिससे हमारे आत्मविश्वास और ऊर्जा के स्त्रोतों में इजाफा होता है और हम जीत में अहंकारी की बजाय अधिक विनम्रता महसूस करते हैं।
इसलिए कभी कभी हारना और उसे स्वीकार करना हमें और अधिक ऊंचाई पर ले जाता है।
याद रहे कि एक शेर शिकार से पहले पीछे की तरफ दुबक कर वार करता है और शिकार करने में विफल होने पर भी शिकार करना नहीं छोड़ता। धनुष बाण की कमान भी जितनी पीछे की और खिंचती है उतना ही तीव्र वार भी करती है और निशाना चूक जाने पर धनुष को बदला नहीं जाता बल्कि निशानेबाज अपने आप को अधिक साधने की कोशिश करता है और पुनः निशाना लगाता है बस इसी प्रकार।
उदाहरण तो अनेक हैं लेकिन प्रेरणा हमेशा समझदार लोगों को ही प्रभावित करती है, मुर्खों को नहीं।
विचारक- अभियंता अनिल सुखवाल